गुरुवार, 30 जून 2011

अर्थान्वेषण-3 - अनेकार्थी शब्दों का अर्थ-निर्णय

आँच-75

अर्थान्वेषण-3

अनेकार्थी शब्दों का अर्थ-निर्णय

आचार्य परशुराम राय

पिछले अंक में संकेतग्रह या शब्दों के अर्थ-ग्रहण के साधनों पर चर्चा की गयी थी। यह हम सभी जानते हैं कि ऐसे शब्दों की संख्या काफी अधिक है जिनके कई अर्थ होते हैं, यथा- राम शब्द के अर्थः सुहावना, सुन्दर, प्रिय, काला, श्वेत, परशुराम, बलराम, दशरथ पुत्र राम आदि। इसी प्रकार हरि शब्द के अनेक अर्थ हैं- यम, अनिल, चन्द्रमा, सूर्य, विष्णु, कृष्ण, सिंह, रश्मि, घोड़ा, तोता, सर्प, बन्दर, मेढक। ऐसी स्थिति में इन शब्दों का एक अर्थ में निर्णय कैसे किया जाय, इसी प्रश्न पर इस अंक में भारतीय दृष्टि या अर्थविज्ञान की दृष्टि से विचार करना अभीष्ट है।

वैसे यह बात अवश्य है कि इस सम्बन्ध में जो भारतीय दृष्टिकोण है उससे आधुनिक भाषाविज्ञान लगभग पूरी तरह से सहमत है और इसके लिए आचार्य भर्तृहरि द्वारा प्रणीत वाक्यपदीय (जो एक व्याकरण का ग्रंथ है, पर इसे व्याकरण दर्शन (philosophy of grammar) भी कह सकते हैं) से दो कारिकाएँ दी जा रही हैं, जिनमें यह बताया गया है कि अनेकार्थक शब्दों का एक अर्थ या अभीष्ट अर्थ में निर्णय कैसे किया जाता है, अर्थात् इसके साधन क्या हैं-

संयोगो विप्रयोगश्च साहचर्यं विरोधिता।

अर्थः प्रकरणं लिङ्गं शब्दस्यान्यस्य सन्निधिः।।

सामर्थ्यमौचिती देशः कालो व्यक्तिः स्वरादयः।

शब्दार्थस्यानवच्छेदे विशेषस्मृतिहेतवः।।

अर्थात् अनेकार्थक शब्दों के अर्थ का निर्णय न होने पर संयोग, विप्रयोग (वियोग), साहचर्य, विरोध, अर्थ, प्रकरण, लिंग, अन्य शब्द की सन्निधि (सान्निध्य), सामर्थ्य, औचित्य, देश, काल, व्यक्ति और स्वर आदि की सहायता से अनेकार्थी शब्दों का अर्थ-निर्णय किया जाता है। इन सभी बिन्दुओं पर एक-एक कर चर्चा करते हैं-

1. संयोग –किसी सम्बन्ध विशेष के आधार पर अनेकार्थक शब्दों के अर्थ का निर्णय किया जाता है। जैसे- नेहरू जी भारत के प्रधानमंत्री थे। यहाँ प्रधानमंत्री पद के संयोग से नेहरू शब्द का अर्थ पं. जवाहरलाल नेहरू लिया जाएगा, अरुण नेहरू या अन्य नहीं।

2. विप्रयोग (वियोग)- संयोग और विप्रयोग दोनों में बड़ा ही सूक्ष्म अन्तर है। अर्थात् सम्बन्ध विशेष के अभाव में या उसके विप्रयोग (वियोग) से अनेकार्थक शब्दों के अर्थ का निर्णय करने में सहायक होता है। यदि उक्त वाक्य को ही थोड़ा परिवर्तन के साथ उदाहरण के रूप में लें- नेहरू जी प्रधानमंत्री नहीं रहे, तो यहाँ प्रधानमंत्री शब्द के विप्रयोग या वियोग के कारण ही नेहरू शब्द का अर्थ पं.जवाहरलाल नेहरू लिया जाएगा।

3. साहचर्य- विख्यात साहचर्य के कारण भी अनेकार्थी शब्दों के अर्थ का निर्णय होता है, यथा- राम और लक्ष्मण में लक्ष्मण के साहचर्य के कारण राम शब्द का अर्थ दशरथ पुत्र राम होगा, बलराम, परशुराम अथवा अन्य नहीं और लक्ष्मण शब्द का अर्थ दशरथ पुत्र लक्ष्मण होगा, दुर्योधन का पुत्र लक्ष्मण नहीं। इसी प्रकार अन्य अनेकार्थी शब्दों के अर्थ-निर्णय की बात भी समझनी चाहिए।

4. विरोध- साहचर्य और विरोध दोनों लगभग एक से हैं। साहचर्य में प्रसिद्ध सकारात्मक सम्बन्ध को आधार माना गया है। जबकि विरोध में विरोधी सम्बन्ध के कारण अनेकार्थी शब्द के अर्थ का नियमन होता है, यथा राम और रावण में राम और रावण के बीच विरोधात्मक सम्बन्ध होने के कारण राम शब्द का अर्थ दशरथ-पुत्र राम के अर्थ में नियमित होता है। जबकि राम और लक्ष्मण में भ्रातृ-साहचर्य के कारण।

5. अर्थ- यहाँ अर्थ शब्द प्रयोजन के लिए प्रयुक्त हुआ है। कहने का तात्पर्य यह कि अनेकार्थी शब्द के जिस अर्थ से प्रयोजन की सिद्धि हो वह अर्थ अभीष्ट माना जाता है। जैसे- मोक्ष के लिए हरि का भजन करना चाहिए। यहाँ हरि का अर्थ मेढक, सर्प, बन्दर, घोड़ा, सूर्य, चन्द्रमा आदि न लेकर विष्णु लेने से ही मोक्ष का प्रयोजन सिद्ध होता है।

6. प्रकरण- यहाँ प्रकरण शब्द प्रसंग का वाचक है। प्रकरण या प्रसंग अनेकार्थी शब्द का अर्थ नियमन का एक महत्त्वपूर्ण साधन है। यथा- प्रसंगानुसार घंटी शब्द के अर्थ लिए जा सकते हैं। उसके दिमाग की घंटी अब बजी है। यहाँ प्रसंग के कारम घंटी का अर्थ समझ हुआ। किन्तु- लंच की घंटी हो गयी। यहाँ घंटी का अर्थ प्रसंग के अनुसार समय होगा।

7. लिंग- इसका अर्थ स्त्रीलिंग या पुलिंग न लेकर चिह्न लिया जाता है। जैसे- गरजि तरजि बरसे घनश्याम। यहाँ गर्जन-तर्जन चिह्न के कारण का अर्थ बादल होगा, कृष्ण नहीं।

8. अन्य शब्द का सान्निध्य- किसी शब्द विशेष की सन्निधि के कारण भी अनेकार्थी शब्द एक अर्थ में नियंत्रित होता है। जैसे- चाचा नेहरू में चाचा शब्द की सन्निधि के कारण नेहरू शब्द पं. जवाहरलाल नेहरू का ही वाचक होगा किसी अन्य नेहरू के लिए नहीं।

9. सामर्थ्य- जब किसी कार्य के निष्पादन में किसी की सामर्थ्य का प्रयोग हो, तो अनेकार्थी शब्द का एक अर्थ में नियमन हो जाता है। यथा- चरन कमल बंदौं हरि राई। जाकी कृपा पंगु गिरि लंघै अंधे को सब कछु दरसाई। यहाँ हरि शब्द कृष्ण (विष्णु) के अर्थ में नियंत्रित होता है, क्योंकि उन्हीं की कृपा में लंगड़े को पर्वत पार कराने और अंधे को देखने की क्षमता प्रदान करने की सामर्थ्य है।

10. औचित्य- यहाँ औचित्य का अर्थ योग्यता समझना चाहिए। औचित्य या योग्यता से भी अनेकार्थी शब्द का अर्थ-नियमन होता है। जैसे- संस्कार से व्यक्ति द्विज बनता है। यहाँ द्विज का अर्थ न तो दाँत होगा और न ही पक्षी, क्योंकि संस्कार से द्विज बनने की योग्यता इनमें नहीं है। अतएव यहाँ द्विज का अर्थ ब्राह्मण होगा। क्योंकि उसमें संस्कार ग्रहण करने की योग्यता है।

11. देश- किसी स्थान विशेष के कारण अनेकार्थक शब्द के अर्थ का निर्णय किया जाता है। जैसे- खेलन हरि निकसे ब्रजखोरी। यहाँ ब्रजखोरी (ब्रज की गलियाँ) स्थान विशेष के कारण हरि शब्द का अर्थ कृष्ण में निर्णीत होता है।

12. काल- समय से भी अनेकार्थक शब्द का अर्थ-नियमन होता है। जैसे- कोयल मधु से मत्त हो रहा है। यहाँ मधु शब्द का अर्थ वसन्त होगा, क्योंकि कोयल का मत्त होना वसन्त में ही पाया जाता है।

13. व्यक्ति- यहाँ व्यक्ति का अर्थ स्त्रीलिंग, पुलिंग समझना चाहिए। स्त्रीलिंग, पुलिंग से भी अनेकार्थी शब्द का नियमन होता है। जैसे- मेरे पास रामायण की हिन्दी टीका उपलब्ध है। यहाँ पर टीका शब्द का स्त्रीलिंग में प्रयोग होने के कारण इसका अर्थ व्याख्या (commentary) होगा। इसी प्रकार माथे पर कुंकुम का टीका अच्छा लग रहा है में टीका शब्द पुलिंग में प्रयुक्त होने से इसका अर्थ तिलक होगा।

14. स्वर- स्वर के आरोह-अवरोह से भी अनेकार्थक शब्द का अर्थ निर्णय किया जाता है। वैसे प्राचीन विद्वान वेदों में ही स्वरों के उदात्त, अनुदात्त आदि के प्रयोग भेद को अर्थनियामक मानते हैं। लेकिन इसका प्रभाव प्रायः सभी भाषाओं में देखा जाता है। जैसे- तुम आ गये। इस वाक्य में स्वर-भेद (आरोह-अवरोह/stress or/and accent) के प्रयोग द्वारा आश्चर्य, घृणा, भय, क्रोध, निराशा आदि अर्थ की प्रतीति होती है। पर किसी विशेष ढंग से स्वर के आरोहण-अवरोहण के प्रयोग द्वारा किसी एक अर्थ में इसका नियमन किया जा सकता है।

अनेकार्थी शब्दों के नियामक (साधन) उक्त साधनों के अतिरिक्त और भी हो सकते हैं, ऐसा आचार्य पुण्यराज का मानना है। इन कारिकाओं की टीका करते समय वे लिखते हैं कि समझाने के लिए आचार्य भर्तृहरि ने केवल इन चौदह साधनों को दिया है। इनके अलावा अन्य साधनों को भी आचार्य पुण्यराज ने दिया है। कभी अवसर मिलने पर उनकी चर्चा होगी।

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16 टिप्‍पणियां:

  1. मनोज जी, एक बहुत ही ज्ञानवर्धक लेख प्रस्तुत करने के लिए आपको व आचार्य परशुराम जी दोनों का आभार

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  2. बहुत सुंदर। ज्ञानवर्धक और संग्रहणीय लेख है। आभार

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  3. महाभारत का एक श्लोक है,
    "केशवं पतितं दृष्ट्वा द्रोण हर्षमुपादयत।
    कौरवाः सर्वे रुदन्ति हा!हा! केशव केशवः॥

    कहते हैं कि व्यास के इस कथन पर स्वयं गणेशजी भी सोच में पड़ गये थे। सम्पूर्ण महाभारत में कृष्ण तो कहीं गिरे नहीं और अगर कहीं गिर भी गये हों तो कृष्ण को गिरते देखकर द्रोण हर्ष से क्यों उछल पड़ेंगे? और तो और शत्रु पक्ष के दुष्ट कौरव हा! हा ! केशव! केशव! कर के क्यों रोयेंगे...?

    किन्तु यहाँ केशव का अर्थ है जल में लाश (के (जले) शवं), द्रोण का अर्थ है कौव्वा और कौरव का अर्थ है सियार। अब श्लोक का अर्थ लगाइये। यह महाभारत युद्ध की विभीषिका का वर्णन है। एक दिन में इतनी लाशें गिरती थी कि जलाने या दफ़नाने की जगह ना फ़ुर्सत। लाशों को पानी में बहा दिया जाता था। कौव्वे खुशी के मारे उछल पड़ते थे कि वाह ! अब तो महीनों लाश के उपर बैठ कर मांस खाते रहेंगे। लेकिन एक और मांसाहारी सियार को तैरना तो आता नहीं है... सो वह पानी में लाश को देखता है पर खा नहीं सकता इसीलिये अपना कलेजा पीटता है... हा!..हा...! पानी में लाश ! पानी में लाश ! (काश जमीन पर होता तो सालों तक खाते)

    दरअसल मेरा नाम केशव है इसलिये यह श्लोक याद रहता है। बतौर पत्रकार पहली नौकरी के लिये साक्षात्कार में मेरे नाम के अर्थ के उत्तर में मैने कहा था,संगठित है तो पूर्णब्रह्म और टूट गया तो पानी में लाश।

    अनेकार्थी शब्दों का अर्थ-निर्णय देश-काल-व्यवस्था,प्रसंग के अनुकूल नहीं किया गया तो अनर्थ ही हो जायेगा।

    आचर्यवर को शत-शत नमन!

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  4. आपकी इस उत्कृष्ट प्रवि्ष्टी की चर्चा कल शुक्रवार के चर्चा मंच पर भी की गई है!
    यदि किसी रचनाधर्मी की पोस्ट या उसके लिंक की चर्चा कहीं पर की जा रही होती है, तो उस पत्रिका के व्यवस्थापक का यह कर्तव्य होता है कि वो उसको इस बारे में सूचित कर दे। आपको यह सूचना केवल उद्देश्य से दी जा रही है!

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  5. एक और बहुत ही ज्ञानवर्धक कड़ी।

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  6. सचमुच बहुत ही ज्ञानवर्धक जानकारी डी है आचार्य जी! साथ ही करण जी की टिप्पणी ने बोनस प्रदान किया!!

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  7. डॉक्टर मयंक जी, इस रचना को चर्चा मंच पर लेने व उसकी सूचना देने के लिए आपका हृदय से आभार।

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  8. उत्कृष्ट संग्रहणीय प्रविष्टि !
    आभार !

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  9. बहुत अच्छी जानकारी |
    आता रहूँगा --गुरू-द्वारे ||

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  10. बहुत अच्छा लेख ... संग्रहणीय .. बुक मार्क कर लिया है ..आभार

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  11. शब्दों के अर्थ ग्रहण करने की तकनीक पर शास्त्रीय चर्चा बहुत उपयोगी है। करण के उद्धरण ने आलेख को गुरुता प्रदान की है।

    आभार,

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