शुक्रवार, 22 अप्रैल 2011

शिवस्वरोदय – 40

शिवस्वरोदय – 40

आचार्य परशुराम राय

स्वरज्ञानं धनं गुप्तं धनं नास्ति ततः परम्।

गम्यते तु स्वरज्ञानं ह्यनायासं फलं भवेत्।।214।।

अन्वय – श्लोक अन्वित क्रम में है, अतएव इसके अन्वय की आवश्यकता नहीं है।

भावार्थ- भगवान शिव कहते हैं कि हे देवि, स्वरज्ञान से बड़ा कोई भी गुप्त ज्ञान नहीं है। क्योंकि स्वर-ज्ञान के अनुसार कार्य करनेवाले व्यक्ति सभी वांछित फल अनायास ही मिल जाते हैं।

English Translation – Lord Shiva said, “O Goddess, there is no most secret knowledge in the world other than the science of breath (Swarodaya). Because one can get desired result by performing his work in his life according to the instructions given in it.”

श्री देव्युवाच

देव देव महादेव महाज्ञानं स्वरोदयम्।

त्रिकालविषयं चैव कथं भवति शंकर।।215।।

अन्वय – यह श्लोक भी अन्वित क्रम में है।

भावार्थ – देवी भगवान शिव से कहती हैं- हे देवाधिदेव महादेव, आपने मुझे स्वरोदय का सर्वोच्च ज्ञान प्रदान किया। मुझे अब यह बताने की कृपा करें कि स्वरोदय ज्ञान के द्वारा कोई कैसे भूत, भविष्य और वर्तमान तीनों काल का ज्ञाता हो सकता है।

English Translation – The Goddess said to Lord Shiva, “O God of gods, you initiated me in the highest knowledge of breath (Swarodaya). Now you are requested to tell me how one can have knowledge of present, past and future.”

ईश्वर उवाच

अर्थकालजयप्रश्नशुभाशुभमिति त्रिधा।

एतत्त्रिकालविज्ञानं नान्यद्भवति सुन्दरि।।216।।

अन्वय – यह श्लोक भी अन्वित क्रम में है।

भावार्थ - माँ पार्वती के इस प्रकार पूछने पर भगवान शिव ने कहा- हे सुन्दरि, काल के अनुसार सभी प्रश्नों के उत्तर तीन भागों में विभक्त किया जा सकता है- विजय, सफलता और असफलता। स्वरोदय के ज्ञान के अभाव में इन तीनों को समझ पाना कठिन है।

English Translation – In reply to the question put forth by The Goddess, Lord Shiva said to her, “O Beautiful Goddess, all the time we need to know about victory, success and failure. We cannot know about these three aspects of our life without the knowledge of Swarodaya.”

तत्त्वे शुभाशुभं कार्यं तत्त्वे जयपराजयौ।

तत्त्वे सुभिक्षदुर्भिक्षे तत्त्वं त्रिपादमुच्यते।।217।।

अन्वय - तत्त्वं त्रिपादमुच्यते, तत्त्वे शुभाशुभं कार्यं तत्त्वे जयपराजयौ तत्त्वे सुभिक्षदुर्भिक्षे (च)।

भावार्थ – तत्त्व को त्रिपाद कहा गया है, अर्थात् तत्त्व के द्वारा ही शुभ और अशुभ, जय और पराजय तथा सुभिक्ष और दुर्भिक्ष को जाना जा सकता है।

English Translation – Further Lord Shiva Said, “Tattvas have three aspects- auspicious and inauspicious, victory and defeat & profit and loss. Desired result can be achieved by proper use the knowledge of Tattvas active in the breath as stated earlier.”

श्री देव्युवाच

देव देव महादेव सर्वसंसारसागरे।

किं नराणां परं मित्रं सर्वकार्यार्थसाधकम्।।218।।

अन्वय – यह श्लोक अन्वित क्रम में है।

भावार्थ – भगवान शिव का ऐसा उत्तर पाकर माँ पार्वती ने पुनः उनसे पूछा- हे देवाधिदेव महादेव, सम्पूर्ण भवसिन्धु में मनुष्य का सबसे बड़ा मित्र कौन है और यहाँ वह कौन सी वस्तु है जो उसके सभी कार्यों को सिद्ध करता है?

English Translation – Thereafter the Goddess again said to Lord Shiva, “O Lord, who is the best friend in the world and by which one can get full success in the life?”

ईश्वर उवाच

प्राण एव परं मित्रं प्राण एव परः सखा।

प्राणतुल्यो परो बंधुर्नास्ति नास्ति वरानने।।219।।

अन्वय – यह श्लोक अन्वित क्रम में है।

भावार्थ – माँ पार्वती को उत्तर देते हुए भगवान शिव ने कहा- हे वरानने, इस संसार में प्राण ही सबसे बड़ा मित्र और सबसे बड़ा सखा है। इस जगत में प्राण से बढ़कर कोई बन्धु नहीं है।

English Translation – In reply, Lord Shiva said to her, “ O Beautiful Goddess, vital energy (breath) is the best friend of human being in the world and one can get full success in the life by using its knowledge as described in the science of breath (Swaroday Vijnian). There is nothing the most useful in the universe other than this knowledge.”

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16 टिप्‍पणियां:

  1. शिव सूत्र का अनुपम ज्ञान प्रस्तुत करने के लिए आभार।

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  2. पवित्र लेखन पढ़कर मन प्रसन्न हो गया ...
    बहुत-बहुत आभार

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  3. इस ज्ञानामृतपान हेतु आभार आपका ।

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  4. आपके विचार अच्छे लगे

    अच्छी पोस्ट

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  5. इस ज्ञानवर्धक श्रृंखला से हम काफ़ी लाभान्वित हो रहे हैं।

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  6. आपकी उम्दा प्रस्तुति कल शनिवार (23.04.2011) को "चर्चा मंच" पर प्रस्तुत की गयी है।आप आये और आकर अपने विचारों से हमे अवगत कराये......"ॐ साई राम" at http://charchamanch.blogspot.com/
    चर्चाकार:-Er. सत्यम शिवम (शनिवासरीय चर्चा)

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  7. तत्त्व को त्रिपाद कहा गया है, अर्थात् तत्त्व के द्वारा ही शुभ और अशुभ, जय और पराजय तथा सुभिक्ष और दुर्भिक्ष को जाना जा सकता है।...

    बहुत सुन्दर जानकारी...

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  8. शिवस्वरोदय एक अभिनव विद्या है जिसका प्रसार कर आप लोकहित का कार्य कर रहे हैं।

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  9. भगवान शिव ठीक ही कहते हैं कि प्राण ही सबसे बड़ा मित्र और सबसे बड़ा सखा है। ज़ाहिर है,जब भगवान शिव कह रहे हैं तो वे स्थूल प्राण की बात नहीं कर रहे होंगे।

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  10. अद्भुत श्रंखला, अनमोल वचन ।
    आभार।

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