शुक्रवार, 4 फ़रवरी 2011

शिवस्वरोदय-29

शिवस्वरोदय-29

-आचार्य परशुराम राय

वामे वा दक्षिणे वाSपि उदयाः पञ्च कीर्तिताः।

अष्टधा तत्त्वविज्ञानं श्रृणु वक्ष्यामि सुन्दरि।।145।।

अन्वय - वामे वा दक्षिणे वाSपि उदयाः पञ्च कीर्तिताः, (अत एव) हे सुन्दरि, अष्टधा तत्त्वविज्ञानं श्रृणु वक्ष्यामि।

भावार्थ – भगवान शिव कहते हैं कि चाहे बाँया स्वर चल रहा हो या दाहिना, दोनों ही स्वरों के प्रवाह-काल के दौरान बारी-बारी से पंच महाभूतों का उदय होता है। हे सुन्दरि, तत्व-विज्ञान आठ प्रकार का होता है। उन्हें मैं बताता हूँ, ध्यान से सुनो।

English Translation – Lord Shiva says, “O Beautiful Goddess, five Tattvas (earth, water, fire, air and ether) appears in both Swaras, i.e. during the flow of breath either through left nostril or right nostril, one by one. There are eight levels of energy, I am telling you, listen them attentively.

प्रथमे तत्त्वसङ्ख्यानं द्वितीये श्वासन्धयः।

तृतीये स्वरचिह्नानि चतुर्थे स्थानमेव चः।।146।।

पञ्चमे तस्य वर्णाश्च षष्ठे तु प्राण एव च।

सप्तमे स्वादसंयुक्ता अष्टमे गतिलक्षणम्।।147।।

अन्वय – ये दोनों श्लोक अन्वित क्रम में हैं, अतएव अन्वय की आवश्यकता नहीं है।

भावार्थ – पहले भाग में तत्त्वों की संख्या होती है, दूसरे भाग में स्वर का मिलन होता है, तीसरे भाग में स्वर के चिह्न होते हैं और चौथे भाग में स्वर का स्थान आता है। पाँचवें भाग उनके (तत्त्वों के) वर्ण (रंग) होते हैं। छठवें भाग में प्राण का स्थान होता है। सातवें भाग में स्वाद का स्थान होता है और आठवें में उनकी दिशा।

English Translation – First level is the number of Tattvas, second is transition of Swaras, third is signs or indications of tattvas, fourth is their places, fifth is their colours, sixth is life energy, seventh is taste and eighth is their directions.

एवमष्टविधं प्राणं विषुवन्तं चराचरम्।

स्वरात्परतरं देवि नान्यथा त्वम्बुजेक्षणे।।148।।

अन्वय – हे अमबुजेक्षणे देवि, एवमष्टविधं प्राणं चराचरं विषुवन्तम्, अत एव स्वरात्परतरन्तु नान्यथा (स्यात्)।

भावार्थ - हे कमलनयनी, इस प्रकार यह प्राण आठ प्रकार से सम्पूर्ण चर और अचर विश्व में व्याप्त है, अतएव स्वर-ज्ञान से बढ़कर दूसरा कोई ज्ञान नहीं है।

English Translation – O Beautiful Goddess with good looking eyes like lotus, in this way this whole creation is comprised of the vital energy with eight levels, as stated above.

निरीक्षितव्यं यत्नेन सदा प्रत्यूषकालतः।

कालस्य वञ्चानार्थाय कर्म कुर्वन्ति योगिनः।।149।।

अन्वय – (अत एव) सदा प्रत्यूषकालतः यत्नेन निरीक्षितव्यम्। योगिनः कालस्य वञ्चानार्थाय कर्म कुर्वन्ति।

भावार्थ – अतएव तड़के उठकर भोर से ही यत्न पूर्वक स्वर का निरीक्षण करना चाहिए। इसीलिए काल के बन्धन से मुक्त होने के लिए योगी लोग स्वर-ज्ञान में विहित कर्म करते हैं, अर्थात् स्वर-ज्ञान के अन्तर्गत बताई गयी विधियों का अभ्यास करते हैं।

English Translation – Therefore this Swara is required to be observed immediately from getting up early in the morning, i.e. before sunrise. Yogis practice the techniques prescribed by this science. There is no superior knowledge other than the knowledge of Swara to get rid of the bondage of time factor.

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11 टिप्‍पणियां:

  1. काश!हम सब इन प्रक्रियों से गुजर पाते।

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  2. आज की व्याख्या में अध्यात्म के चरम सोपान तक पहुँचने का सही रास्ता दिखाया गया है ...
    आचार्य जी का धन्यवाद

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  3. बहुत सुन्दर मनोज जी । आपका ब्लाग bolg world .com में जुङ गया है ।
    कृपया देख लें । और उचित सलाह भी दें । bolg world .com तक जाने के
    लिये सत्यकीखोज @ आत्मग्यान की ब्लाग लिस्ट पर जाँय । धन्यवाद ।

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  4. .

    हे आचार्य !
    कैसे जानूँ कि स्वर कौन-सा चल रहा है? चन्द्र-स्वर और सूर्य स्वर दोनों ही तो श्वास-प्रश्वास का अभ्यास कर रहे हैं. अब कौन-सा बीच में आलस्य कर जाये? कैसे पकडूँ उस आलसी स्वर को? मैं तो तर्जनी और मध्यमा लगा लगाकर थक चुका. मुझे वह उपाय सुझाएँ कि प्रातः उठते ही मुझे बोध हो जाये कि कौन-सा स्वर अधिक सक्रीय है?
    योग के अंतर्गत स्वर के सन्दर्भ का यही अध्याय मुझे पहले भी कई बार एकान्तिक साधना करवाता रहा है.

    .

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  5. .

    ".. अतएव तड़के उठकर भोर से ही .."

    @ 'तड़के' और 'भोर' में अंतर देखना चाहता हूँ.
    'तड़के' क्या अपने आप में पूरा शब्द है? क्या यह देशज है? इस शब्द की व्युत्पत्ति कैसे हुई?
    क्या 'त्वरा' अथवा त्वरित से तो नहीं हुई?
    "पौं फटना" को भी स्पष्ट कर दें ...... तो मेरी व्यर्थ की जिज्ञासा का शमन होगा.
    यहाँ 'फटना' क्रिया क्या इस लिये प्रयुक हुई है कि सूर्य का प्रकाश अन्धकार को चीरता हुआ फैलता है?

    .

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  6. प्राण- प्राण फलता रहा साँसों का वरदान
    स्वर के ज्ञान में है छुपा जीवन का विज्ञान

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  7. आपका यह उल्लेखनीय कार्य महत्वपूर्ण ग्रंथ का आकार ले रहा है जो आने वाले समय की उपलब्धि साबित होगा।
    आपको आभार,

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