शुक्रवार, 3 दिसंबर 2010

शिवस्वरोदय - 20

शिवस्वरोदय - 20

आचार्य परशुराम राय

इस अंक में स्वर विशेष के प्रवाह-काल में किए जाने वाले कार्य विशेष का उल्लेख किया जा रहा है।

तिष्ठेत्पूर्वोत्तरे चन्द्रो भानु: पश्चिमदक्षिणे।

दक्षनाडया: प्रसारे तु न गच्छेद्याम्यपश्चिमे॥ (75)

अन्वय - चन्द्र: पूर्वोत्तरे तिष्ठेत् भानु: पश्चिमदक्षिणे। (अतएव) दक्षनाडया: प्रसारे याम्यपश्चिमे तु न गच्छेत्।

भावार्थ - चन्द्रमा का सम्बन्ध पूर्व और उत्तर दिशा से है और सूर्य का दक्षिण और पश्चिम दिशा से। अतएव दाहिनी नाक से साँस चलते समय दक्षिण और पश्चिम दिशा की यात्रा प्रारम्भ नहीं करनी चाहिए।

English Translation:- The moon is related to East and North, whereas the sun is related to South and West. Therefore one should not undertake any journey towards south and west directions during the flow of breath through right nostril.

वमाचारप्रवाहे तु न गच्छेत्पूर्वउत्तरे।

परिपंथिभयं तस्य गतोऽसौ न निवर्तते॥ (76)

अन्वय - वामाचार प्रवाहे तु पूर्वउत्तरे न गच्छेत्। (यत:) तस्य परिपंथिभयं असौ गत: न निवर्तते।

भावार्थ - इडा् नाड़ी के प्रवाह के समय उत्तर एवं पूर्व दिशा की यात्रा आरम्भ नहीं करनी चाहिए। 'क्योंकि इड़ा के प्रवाह काल में यात्रा के आरम्भ करने पर रास्ते में डाकुओं द्वारा लुटने का भय होता है या यात्रा से वह घर नहीं लौट पाता।

English Translation:- In the same way we should not start our journey to North and East direction during the flow of breath through left nostril. Because if we start our journey during the flow of breath through left nostril to the north and east directions, we may be robbed on the way or we may loose our life.

तत्र तस्मान्न गंतव्यं बुधै: सर्वहितैषिभि:।

तदा तत्र तु संयाते मृत्युरेव न संशय:॥ (77)

अन्वय - तस्मात् बुधै: सर्वहितैषिभि: तत्र न गंतव्यम्। तदा तु संयाते मृत्यु एव न तत्र संशय:।

भावार्थ - अतएव बुद्धिमान लोग सफलता पाने के उद्देश्य से वर्जित नाड़ी के प्रवाह के दौरान वर्जित दिशा की यात्रा प्रारम्भ नहीं करते, अन्यथा मृत्यु अवश्यंभावी है।

English Translation:- Therefore wise persons do not start their journey to the directions prohibited during the flow of breath through the particular nadi, otherwise death is caused.

शुक्लपक्षे द्वितीयायामर्के वहति चन्द्रमा:।

दृश्यते लाभद: पुसां सौम्ये सौख्यं प्रजायते। (78)

अन्वय - शुक्लपक्षे द्वितीयायाम् अर्के (यदि) चन्द्रमा वहति, पुसां सौम्ये लाभद: दृश्यते सौख्यं (च) प्रजायते।

भावार्थ - यदि शुक्ल पक्ष की द्वितीया को सूर्योदय के समय चन्द्र स्वर प्रवाहित हो, तो लाभ और मित्र के मिलने की संभावना अधिक होती है।

English Translation:- In case, breath flows through left nostril at sunrise on the second day of bright fortnight, there is strong possibility of gain and meeting with friends.

सूर्योदय यदा सूर्यश्चन्द्रश्चन्द्रोदये भवेत्।

सिध्यन्ति सर्वकार्याणि दिवारात्रिगतान्यपि॥ (79)

अन्वय - यदा सूर्योदये सूर्य: चन्द्रोदये (च) चन्द्र: भवेत्, (तदा) दिवारात्रिगतान्यपि सर्वाणि कार्याणि सिध्यन्ति।

भावार्थ - जब सूर्योदय के समय सूर्य स्वर और चन्द्रोदय के समय चन्द्र स्वर बहे, तो उस दिन किए गए सभी कार्य सफल होते हैं।

English Translation:- When the breath flows through right nostril at the time of sunrise and through left nostril at the time of moon-rise, the work done on the day is completed successfully.

चन्द्रकाले यदा सूर्यश्चन्द्र: सूर्योदये भवेत्।

उद्वेग: कलहो हानि: शुभं सर्व निवारयेत्॥ (80)

अन्वय - यदा चन्द्रकाले सूर्य: सूर्योदये चन्द्र: भवेत् (तदा) उद्वेग:, कलह:, हानि: (भवेत्) शुभं सर्वं निवारयेत्।

भावार्थ - लेकिन जब सूर्योदय के समय चन्द्र नाड़ी और चन्द्रोदय के समय सूर्य नाड़ी प्रवाहित हो, तो उस दिन किए सारे कार्य संघर्षपूर्ण और निष्फल होते हैं।

English Translation:- But when the breath flows through left nostril at the sunrise and through right nostril at the time of moon-rise, any work done on the day never completed successfully.

सूर्यस्यवाहे प्रवदन्ति विज्ञा: ज्ञानं ह्रगमस्य तु निश्चयेन।

श्वासेन युक्तस्य तु शीतरश्मे:, प्रवाहकाले फलमन्यथा स्यात्॥ (81)

अन्वय - विज्ञा: अगमस्य हिज्ञानं प्रवदन्ति (यत्) सूर्य वाहे निश्चयेन (किन्तु) शीतरश्मे: श्वासेन युक्तस्य प्रवाहकाले अन्यथा फलं स्यात्॥

भावार्थ - विद्वान लोग कहते हैं कि सूर्य स्वर के प्रवाह काल में किए गए कार्यों में अभूतपूर्व सफलता मिलती है, जबकि चन्द्रस्वर के प्रवाह काल में किए गए कार्यों में ऐसा कुछ नहीं होता।

English Translation:- Wise persons say that great success is attained in the work done during the flow of breath through right nostril, whereas if the same is done during the flow of breath through left nostril, the result is otherwise.

28 टिप्‍पणियां:

  1. राय जी ने बहुत अच्छे रुप में प्रस्तुत किया है इस पोस्ट को, उन्हें साधुवाद.

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  2. Kripaya shivswaroday ki antervastu ke mul shrot ka bhi ullekh karein
    taki iske vrihad rup ko bhi padha ja sake.Gyanparak prastuti ke liye Dhanyavad.

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  3. आपका आलेख ज्ञान का अनमोल ख़ज़ाना है।

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  4. उपयोगी और सार्थक प्रस्तुति।

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  5. बहुत अच्छी प्रस्तुति,

    आभार।

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  6. अत्यंत उपयोगी पोस्ट। आपका महती कार्य ब्लाग जगत और साहित्य जगत के लिए धरोहर है। जो लोग इससे शिक्षा ग्रहण कर रहे उनके लिए बहुत ही लाभकारी है। आपका यह सार्थक प्रयास हमेशा स्मरण किया जाएगा।

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  7. इस बेहद महत्वपूर्ण जानकारी के लिए आभार राय जी।

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  8. बहुत ही उपयोगी जानकारी दी हैं अपने. सचमुच आनंद आ गया.

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  9. चन्द्रनाडी व सूर्य नाडी के सन्दर्भ में बहुत नई व उपयोगी जानकारी. आभार...

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  10. सूर्य स्वर के प्रवाह काल और चन्द्रस्वर के प्रवाह कल के बारे में ज्ञानवर्द्धक जानकारी के लिए आभार ..

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  11. सुन्दर, सरल, सुगम एवं उपयोगी परिचर्चा.... ! आचार्यवर को नमन एवं धन्यवाद !!

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  12. क्या ये सूत्र स्त्री और पुरुष दोनों के लिए समान रूप से लागू होते हैं?

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  13. यह ऋंखला एक क्लासरूम की तरह लगती है!!

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  14. @ प्रेम सरोवर जी,

    इसका मूल स्रोत शिव स्वरोदय ही है। इस पर विभिन्न आचार्यों की कम ही टीकाएं मिलती हैं। यद्यपि एक ब्लागर मित्र ने उल्लेख किया था कि इस विषय से संबंधित पुस्तकें बाजार में अटी पड़ी हैं।

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  15. @ naughty boy एवं छुटकी,

    आपका आना और टिप्पणी करना अच्छा लगता है।

    आभार,

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  16. @ हरीश जी,

    सद्भावना के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।

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  17. @ तारकेश्वर गिरि जी,

    आपके आनन्द में हम सब भी शामिल है। आभार।

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  18. @ शमीम जी,

    ऐसा प्रतीत होता है कि मेरे प्रयास कुछ सफल हो रहे हैं। प्रोत्साहन के लिए आभारी हूँ।

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  19. @ सुशील बाकलीवास जी,

    आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए आभार।

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  20. @ करण जी,

    प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।

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  21. @ सम्वेदना के स्वर जी,

    सद्भावना के लिए आपका आभारी हूँ।

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