शनिवार, 31 जुलाई 2010

ग्रमीण जीवन के चितेरे प्रेमचंद – डॉ. रमेश मोहन झा

ग्रमीण जीवन के चितेरे प्रेमचंद

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डॉ. रमेश मोहन झा

प्रेमचंद एक ऐसे चित्रकार हैं, जो बहुत ही कम रंगों और हल्की रेखाओं से अपना काम चलाते थे। उनके उकेरे गए चित्र आंखों को मोहित करने के बाद हमारी बुद्धि की शिथिलता दूर करते हैं।

उच्छ्वासित राष्ट्रीयता के युग में प्रेमचंद की यथार्थवादी लेखनी उन्हें आकर्षक बनने नहीं देती। वे सुजला, सुफला, शस्य-श्‍यामला भारतभूमि के चित्रकार नहीं हैं। वे किसी से कम प्रेम नहीं करते, किन्तु अपनी ग्रामवासिनी भारत-माता का धूलि-भरा मैला आंचल उनके लिए कभी इंद्रधनुषी नहीं बन सकता था।

प्रेमचंद भारतीय ग्रामीण जीवन के जो चित्र अंकित करते हैं, उनके लिए वे या तो सीधे-सादे फ्रेम तैयार करते हैं या कभी-कभी उन्हें फ्रेम में जड़ते ही नहीं।

जिसका ध्यान चित्र पर केंद्रित रहता है, वे फ्रेम की चिंता करते भी नहीं।

प्रेमचंद के चित्रण में एक संतुलन है।

प्रेमचंद ग्रामीण-जीवन को आवेष्टित करने वाले, प्राकृतिक परिवेश का चित्रण वहां करते हैं, जहां वह आलंबन के लिए उद्दीपन होने के बदले उनका अनिवार्य-अंग रहता है।

ऐसी पृष्ठभूमि-स्वरूप अंकनों के बारे में भी यह उल्लेखनीय है कि प्रेमचंद सदा अनुपात का ध्यान रखते हैं – पृष्ठभूमि, मूल चित्र, मानव जीवन की तुलना में गौण ही बनी रहती है।

प्रेमचंद के ग्रामीण जीवन के चित्रण की सबसे महत्वपूर्ण कलात्मक विशेषता यह है कि उनकी सार्थकता और उपयोगिता प्रायः वैषम्य का प्रभाव उत्पन्न करने के निमित्त है।

एक ओर नागरिक सभ्यता है, तो दूसरी ओर है ग्रामीण संस्कृति। इसी आरोहावरोह-युक्त पृष्ठभूमि के सहारे प्रेमचंद के उपन्यास मनुष्य की दुर्बलता और असफलता के महाकाव्य बन जाते हैं।

प्रेमचंद के ऐसे महाकाव्यात्मक उपन्यासों मे “गोदान” का विशेष महत्व है – न केवल प्रेमचंद के उपन्यासों में, बल्कि श्रेष्ठ उपन्यास-मात्र में। “गोदान” में चित्रित ग्रामीण जीवन उसी में चित्रित नागरिक जीवन का शेष पूरक है। वह नहीं होता तो भारतीय जीवन का जो विराट चित्र प्रेमचंद प्रस्तुत करना चाहते थे, वह अधूरा रह जाता।

इस प्रकार हम कह सकते हैं कि

IMG_0077 प्रेमचंद ने अपने कथा-साहित्य के माध्यम से भारत की दलित मानवता और उपनिवेशवाद के अभिशापों से दबी जनता की मूक-मौन वेदना को सशक्त वाणी दी, साथ ही उन्हें यथार्थ के खुरदरे धरातल पर संघर्ष हेतु ला खड़ा किया।

अगली प्रस्तुति शाम चार बजे आचार्य परशुराम राय द्वारा

7 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत अच्छी प्रस्तुति....अच्छी जानकारी

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  2. बहुत अच्छी प्रस्तुति।
    इसे 01.08.10 की चर्चा मंच में शामिल किया गया है।
    http://charchamanch.blogspot.com/

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  3. बहुत अच्छी प्रस्तुति।
    राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।

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